Sunday, September 7, 2014

रणकोट - आदर्श गांव-निर्मल गांव - खुद ही निकालो गंगा

उत्तराखंड की गंगोलीहाट तहसील का गांव है "रणकोट"। नब्बे परिवारों के इस गांव में चार साल पहले कोई सरकारी अधिकारी जाना पसंद नहीं करता था। लेकिन आज उत्तराखण्ड ही नहीं देश-विदेश के अधिकारी भी यहां पहुंचकर गांव की बदलती तस्वीर देखकर अचम्भित हैं।
चार साल पहले इस गांव में काम करने का संकल्प लिया था राजेन्द्र सिंह बिष्ट नाम के एक युवक ने। इस "हरिजन ग्राम" के लोग मेहनती हैं, इस सच्चाई को भांपकर राजेन्द्र सिंह ने अपने साथियों के साथ लोगों को इस बात का विश्वास दिलाया कि "थोड़ा श्रमदान- थोड़ा अंशदान" से गांव की किस्मत बदली जा सकती है। तब गांव में एक समिति बनाई गई बहादुर राम और नंदनी देवी के नेतृत्व में। सबसे पहले जलस्रोत की मरम्मत हुई, पानी एकत्र करने के लिए प्राकृतिक गड्ढे बनाये गए। इसके पश्चात एक लाख चालीस हजार रु. एकत्र करके फिल्टर टैंक, पाइप इत्यादि लगाने का कार्य श्रमदान से पूरा हुआ। घर-घर तक जब पानी पहुंचा तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। ग्रामीणों का ये प्रयास "भगीरथ की मेहनत से गंगा निकालने" से कम नहीं था। गांव के लोगों के काम को सरकार ने सराहा और "सर रतन टाटा ट्रस्ट" ने भी। ट्रस्ट ने इस गांव में घर-घर शौचालय बनाने की योजना बनाई। गांव वालों ने खुद श्रमदान करके तीन महीने के भीतर 90 के 90 घरों में शौचालय बना डाले। राज्य सरकार ने इस गांव की पूरी तस्वीर केन्द्र सरकार के पास भेजी और सन् 2006 में इस "रणकोट" गांव को "निर्मल ग्राम पुरस्कार" मिला। पुरस्कार में मिली दो लाख रु.की राशि को गांव वालों ने राजेन्द्र बिष्ट को देने का निर्णय किया। लेकिन उन्होंने उक्त राशि को गांव वालों की कुछ राशि के साथ मिलाते हुए हर घर में "रसोई गैस" की सुविधा दिलाने में खर्च करवा दिया। अब हर घर में लकड़ी नहीं बल्कि "गैस" से खाना पकता है।
राजेन्द्र बिष्ट कहते हैं, "चार सालों की मेहनत से अब पूरा गांव साफ-सुथरा हो गया। साफ-सफाई से बीमारियां दूर हो गईं। पूरा गांव धुआंरहित हो गया। जंगल बच गया। जंगली जानवरों से महिलाएं-बच्चे निजात पा गये।" राजेन्द्र बिष्ट कहते हैं कि अब यहां के बच्चे ज्यादा संस्कारी व शिक्षित होंगे। जागरूक भी होंगे, इन्हें अब अपने लिए काम करना आ गया है। सरकार करे या न करे, इन्हें हिमालय से गंगा निकालना आ गया है। बहादुर राम, नंदनी देवी, अनुलीदेवी, सुंदर राम अपनी तकदीर खुद लिखना सीख गये हैं।

Source : http://panchjanya.com/arch/2009/8/16/File20.htm
 

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