Sunday, February 27, 2011

पिपलांत्रीः जगमगाती गलियां और वातानुकूलित पंचायत भवन

उदयपुर से तक़रीबन 70 किलोमीटर दूर राजसमंद ज़िले में एक ग्राम पंचायत है पिपलांत्री. 16 सौ की आबादी वाली यह ग्राम पंचायत विकास के नित नए सोपान रच रही है. अरावली की संगमरमर की पहाड़ियों पर बसे पिपलांत्री को देखकर गर्व होता है कि भारत गांवों का देश है और अब गांव भारत के लोकतंत्र को सही मायनों में परिभाषित कर रहे हैं. यह यहां के लोगों द्वारा मिलजुल कर लिए गए फैसलों का ही नतीजा है कि पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहे पिपलांत्री की पहाड़ियों से मीठे पानी के
स्रोत फूट रहे हैं और पत्थरों पर फूल खिल रहे हैं. आप गांव में घूमेंगे तो वैसा कतई नहीं लगेगा, जैसा राजस्थान के किसी दूरदराज के गांव का खयाल आने पर एक तस्वीर उभरती है. पूरे गांव में पक्की सड़कें, हर घर में पानी का कनेक्शन, दूधिया स्ट्रीट लाइटों से जगमगाती गलियां, प्राइमरी से लेकर इंटर तक अच्छे स्कूल-कॉलेज, महापुरुषों की प्रतिमाओं से सजे चौराहे और स्थानीय लोगों को सुकून देता यहां का वातानुकूलित पंचायत भवन. यानी वह हर सुख-सुविधा, जो किसी अच्छे शहर में भी मयस्सर नहीं होती.
यह गांव संगमरमर की पहाड़ियों पर बसा है और इसके चारों ओर बड़े पैमाने पर संगमरमर के खनन का काम होता है. खनन के दौरान निकलने वाले मलबे को गांव में ही डाला जाता था, जिससे यहां न केवल पत्थरों के मलबे के पहाड़ बन रहे थे, बल्कि गांव की ज़मीन और आबोहवा भी ख़राब हो रही थी. गांव वालों ने तो इसे जैसे अपनी नियति ही मान लिया था. पंचायत की बागडोर पिछले 3 दशकों से एक ही परिवार के हाथों में थी.
पिपलांत्री में विकास की जो इबारत लिखी जा रही है, उसकी कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं है. तक़रीबन 6-7 साल पहले तक गांव वाले नहीं जानते थे कि पंचायत का मतलब क्या होता है अथवा पंचायत द्वारा गांव के विकास के लिए कोई काम कराए जा भी रहे हैं या नहीं. चूंकि यह गांव संगमरमर की पहाड़ियों पर बसा है और इसके चारों ओर बड़े पैमाने पर संगमरमर के खनन का काम होता है. खनन के दौरान निकलने वाले मलबे को गांव में ही डाला जाता था, जिससे यहां न केवल पत्थरों के मलबे के पहाड़ बन रहे थे, बल्कि गांव की ज़मीन और आबोहवा भी ख़राब हो रही थी. गांव वालों ने तो इसे जैसे अपनी नियति ही मान लिया था. पंचायत की बागडोर पिछले 3 दशकों से एक ही परिवार के हाथों में थी. वर्ष 2005 में जब ग्राम पंचायत के चुनाव हुए तो पंचायत की बागडोर गांव के ही नौजवान श्याम सुंदर पालीवाल के हाथ में आ गई.

कैसे बदला पिपलांत्री

श्याम सुंदर पालीवाल ने सरपंच बनते ही सबसे पहले पंचायत घर को दुरुस्त कराया. पालीवाल बताते हैं, चूंकि पंचायत घर में गांव के हर वर्ग के लोग आते हैं. यहां बैठकर लोगों को सुकून मिले, इसलिए हमने इसकी इमारत को दुरुस्त कराया, एयर कंडीशनर लगवाया, आरामदायक कुर्सियों-सुंदर फर्नीचर एवं बिजली-पानी की व्यवस्था की. यानी हमने पंचायत को सभी सुविधाओं से लैस कराया. पिपलांत्री में राजस्थान का पहला वातानुकूलित पंचायत घर है.

ग्रामसभा बनी विकास का आधार

पालीवाल बताते हैं, गांव में समस्याओं का अंबार लगा था. काम बहुत करने थे, लेकिन काम कहां से और कैसे शुरू करें, इसके लिए मैंने ग्रामसभा का सहारा लिया. शुरुआत हुई शिक्षा में सुधार से. पंचायत घर से शुरू हुई गांव के विकास की यात्रा स्कूल-कॉलेज, सड़क, पानी एवं स्ट्रीट लाइट से होती हुई आज तक बदस्तूर जारी है.

जनता की भागीदारी

पिपलांत्री में खास बात यह है कि यहां के हर काम में गांव के लोग जुड़े हुए हैं. मसलन यहां स्ट्रीट लाइटें सड़क पर किसी खंभे पर न लगकर घरों के बाहर लगी हैं. उनका कनेक्शन घर के मीटर से है. स्ट्रीट लाइट के बिजली ख़र्च से लेकर रखरखाव तक पूरी ज़िम्मेदारी संबंधित घर पर है. जो परिवार स्ट्रीट लाइट का रखरखाव नहीं करता, उसके घर से वह लाइट उतरवा ली जाती है.

सबका ख्याल

पिपलांत्री में मानवीयता की भी कई मिसालें हैं. गांव में कई स्थानों पर सोलर पंप लगे हैं. गांव वालों की सलाह पर वहां पशुओं के लिए पानी की हौदियां बनवाई गईं. एक आदमी ने सलाह दी कि इन हौदियों में जब गिलहरी और चूहा जैसे छोटे जीव पानी पीने के  लिए आते हैं तो वे अक्सर पानी में गिर जाते हैं और निकलने का रास्ता न होने के कारण मर जाते हैं. अब इसके लिए हर हौदी में छोटी-छोटी सीढ़ियां बनवा दी गई हैं.

पेड़ मेरा भाई

पत्थरों के इस गांव में लहलहाती हरियाली और झूमते पेड़ सरकार द्वारा चलाई जा रही पर्यावरण बचाने की मुहिम के लिए एक प्रेरक मिसाल हो सकते हैं. यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज़ खानापूर्ति नहीं है, बल्कि एक रिश्ता है, स्नेह है. गांव वाले अब तक एक लाख से भी ज़्यादा पेड़-पौधे लगा चुके हैं. इसमें गांव की महिलाओं की भागीदारी सबसे ज़्यादा है. गांव में हर किसी के  नाम से एक पेड़ लगा हुआ है. उसकी सिंचाई, काट-छांट और देखभाल की ज़िम्मेदारी उसी पर है. गांव में जब किसी की मृत्यु होती है तो उस परिवार के लोग उसकी याद में 11 पेड़ लगाते हैं और हमेशा के लिए उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी संभालते हैं. जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है तो ग्राम पंचायत द्वारा उस लड़की के नाम 18 साल के लिए 10 हज़ार रुपये की धनराशि जमा की जाती है, मगर लड़की के मां-बाप द्वारा तब तक हर साल 10 पौधे रोपे जाते हैं. इस तरह लड़की के ब्याह लायक़ कुछ पैसे जमा हो जाते हैं और गांव को 180 पेड़ मिल जाते हैं. पेड़ों को बचाने के लिए गांव में एक अनोखी मुहिम चलाई गई है. रक्षाबंधन के दिन गांव की महिलाएं पेड़ों को अपना भाई मानकर उन्हें राखी बांधती हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देती हैं. श्याम सुंदर पालीवाल बताते हैं कि पेड़ लगाने व़क्त कुछ बातों का ख्याल रखा जाता है. ज़्यादातर फलदार पौधे लगाए जाते हैं, ताकि जब ये पेड़ बनकर फल दें तो गांव की ग़रीब महिलाएं उन फलों को बेचकर कुछ पैसे कमा सकें. गांव में बड़े पैमाने पर एलोवेरा यानी ग्वारपाठा लगाया जा रहा है. गांव की हर पहाड़ी और हर रास्ते में एलोवेरा लगा है. पंचायत की योजना है कि यहां एलोवेरा जूस का प्लांट लगाकर ख़ुद ही उसकी बिक्री की जाए. इस पंचायत के सचिव जोगेंद्र प्रसाद शर्मा की नियुक्ति यहां कुछ महीने पहले ही हुई है. वह बताते हैं कि जबसे हम इस गांव में आए हैं, पौधे ही लगवा रहे हैं.

एनीकट यानी जीवनधारा

बरसात के समय पहाड़ियों से होकर नीचे बेकार बहने वाले पानी को एक जगह इकट्ठा करने के लिए गांव में कई जगह एनीकट बने हैं. आज इन्हीं एनीकटों की बदौलत गांव के हर घर में पेयजल का कनेक्शन है.

पारदर्शिता

वैसे तो पंचायत के हर काम में गांव के हर आदमी की भागीदारी है, मगर फिर भी सभी जानकारियों को गांव की वेबसाइट पिपलांत्री डॉट कॉम पर समय-समय पर डाला जाता है. श्याम सुंदर पालीवाल अब पूर्व सरपंच बन चुके हैं, मगर वह आज भी हर काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. साफ-सफाई की बदौलत पिपलांत्री को निर्मल ग्राम पंचायत का खिताब मिल चुका है. पिपलांत्री ग्राम पंचायत से 7 और गांव जुड़े हैं. पिपलांत्री की तरह उन सभी गांवों में भी पक्की सड़कें, सामुदायिक शौचालय और पेयजल कनेक्शन हैं.

खेल-खेल में ऊर्जा उत्पादन

गांव के लोग पर्यावरण को लेकर कितने जागरूक हैं, इस बात का अंदाज़ा यहां मौजूद सोलर स्ट्रीट लाइट, सोलर वाटरपंप और झूला पंपों को देखकर लगाया जा सकता है. यहां स्कूलों में ज़मीन से पानी निकालने और उसे टंकी में इकट्ठा करने के लिए झूलों की मदद ली जाती है. एक स्कूल में चकरी वाला झूला लगा है. बच्चे उसे घूमाते हैं और उस पर झूलते हैं. झूलों से खींचे गए पानी को स्कूल में पीने और साफ-सफाई आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

आसान नहीं थी डगर

गांव में संगमरमर के पहाड़ हैं. यहां कई बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा खनन का काम हो रहा है. वे सारा मलबा गांव की ज़मीन पर डालती आ रही थीं. श्याम सुंदर पालीवाल ने गांव वालों को साथ लेकर कंपनियों का विरोध किया. चूंकि कंपनियों के पास ग्राम पंचायत और प्रशासन की एनओसी थी, इसलिए पालीवाल को पूर्व सरपंच और स्थानीय प्रशासन से भी टकराना पड़ा. आख़िरकार जीत गांव वालों की हुई. आज इन खदानों से ग्राम पंचायत को आमदनी भी होने लगी है.

आभार  : http://www.chauthiduniya.com/2010/11/piplantri-jagmagati-galiyan-our-watanukulit-panchayat-bhawan.html

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