राजकोट। गुजरात के इस गांव में ढूंढें से भी किसी के घर ताला
नहीं मिलेगा, क्योंकि यहां कोई भी अपने घर में ताला नहीं लगाता। घर तो घर,
दोपहर में दुकानदार अपनी दुकान खुली की खुली छोड़कर घर खाना खाने भी आ जाते
हैं। ग्राहक दुकान पर आए तो अपनी जरूरत की वस्तु लेकर उसकी कीमत के रुपए
दुकान के गल्ले में डालकर चला जाता है। सिर्फ एक घटना को छोड़ दें तो यहां
आज तक कभी भी चोरी की घटना नहीं हुई। इस गांव में हुई चोरी की एकमात्र घटना
भी कुछ ऐसी रही थी कि दूसरे ही दिन खुद चोर ही ने पंचायत में अपना अपराध
कुबूल कर लिया था और इसका प्रायश्चित करने के लिए उसने मुआवजा भी दिया था।
यहां गुटखा विरोधी अभियान चलाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि यहां
पहले से गुटखे पर प्रतिबंध था और इस नियम को कोई तोड़ता भी नहीं। ग्राम
पंचायतों की दुकानों पर केरोसिन भी उचित कीमत पर ही मिलता है। गुजरात के
सौराष्ट्र में स्थित है इस गांव का नाम है राजसमढियाला, जो राजकोट शहर से
मात्र 22 किमी की दूरी पर स्थित है।
इसके बाद उन्होंने प्रति व्यक्ति के लिए एक वृक्ष लगाने का नियम
बनाया। इसी का नतीजा है कि गांव में आप हर जगह हरे-भरे वृक्ष देख सकते हैं।
ग्रामीणों के घर उद्यान की तरह बन चुके हैं। इतना ही नहीं इस गांव में
ग्राम पंचायत से लेकर हरिजन कॉलोनी तक का नजारा किसी रिसोर्ट से कम नहीं
दिखाई देता।
जाडेजा ने गांव में पानी की व्यवस्था भी इतने अच्छे तरीके से की आज
जहां, पूरे सौराष्ट्र में पानी की किल्लत है वहीं, इस गांव में पानी की कोई
कमी नहीं। इसके लिए जाडेजा ने बरसात के पानी को रोकने की व्यवस्था की,
जिसके लिए तालाब बनवाया। इसके अलावा उन्होंने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर
भी काम किया, जिससे गांव की जमीन में जल का स्तर कभी नीचे ही नहीं जाता।
गांव की इस श्रेष्ठता का पूरा श्रेय जाता है यहां रहने वाले हरदेव
सिंह जाडेजा को। एम.ए की पढ़ाई करने के बाद एसआरपी में जुड़े, लेकिन उनका
मन नौकरी में नहीं लगा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद
गांव की राह पकड़ ली। गांव की राह भी उन्होंने कुछ इस अंदाज में पकड़ी कि
पूरे गांव का नक्शा ही बदल डाला और सौराष्ट्र ही नहीं, पूरे गुजरात में
गांव का नाम प्रसिद्ध कर दिया। एक अखबार के पत्रकार ने तो अपने एक लेख में
लिखा भी था कि अगर देश इस गांव के नक्शे कदमों पर चलने चले तो पूरे देश का
उद्धार निश्चित है।
जाडेजा 1978 में इस गांव के सरपंच बने और इसके बाद से ही गांव की जीवन
प्रक्रिया पूरी तरह से बदलने लगी। सरपंच बनने के बाद उन्होंने हर कहीं
कचरा फेंककर गंदगी फैलाने, जुआ खेलने वालों, शराब पीने जैसी असामाजिक
प्रवृत्तियों के खिलाफ नियम बनाया। इस नियम के तहत आरोपी को 30 हजार रुपए
का दंड देना होता था।

सरपंच जाडेजा के कारण पूरा गांव स्वच्छ, सुरक्षित और समृद्ध बन सका है।
इसलिए इस गांव के लोगों के साथ हमें भी उनका आभार व्यक्त करना चाहिए।
जाडेजा यहीं नहीं रुके। गांव के विकास के बाद उन्हें गांव में एक स्टेडियम
बनाने का भी विचार आया। उनके इस विचार को ग्रामीणों ने तुरंत स्वीकार किया
और स्टेडियम हेतु पर्याप्त जमीन के लिए लिए अपनी-अपनी जमीनें भी दे दी।
गांव में बने इस स्टेडियम में क्रिकेट की पांच टर्फ विकेट भी बनाई गई हैं।
इस बारे में जाडेजा कहते हैं कि स्टेडियम बनाने से पहले हमें हरेक प्रकार
की प्राथमिक सुविधाओं पर भी ध्यान दिया। अब पूरे गांव में सीमेंट की सड़कें
बन चुकी हैं। अब गांव को प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने का अभियान चल रहा है।
इसके लिए नियम बनाया गया है कि अगर कोई प्लास्टिक की थैलियों का कचरा
इधर-उधर फेंकता है तो उसे 51 रुपए का दंड देना होगा। इसके तहत अब तक कई ऐसे
घरों से 31 रुपए का हर्जाना लिया जा चुका है, जिनके घर के बाहर प्लास्टिक
का कचरा पड़ा हुआ दिखाई दिया।

इन सभी नियमों और ग्रामीणों की प्रतिबद्धता का कमाल है कि अब आसपास के
गांव भी इस गांव का अनुसार करने लगे हैं। राजसमढियादा की समृद्धि को देखते
हुए आसपास के खोलडदल, अणियारा, लीली साजडियाणी, भूपगण, लाखापर, तंब्रा
जैसे गांवों में तो अब तक 130 चेकडेम भी बन चुके हैं।
तो अब आप क्या कहते हैं, एक हरदेवसिंह जाडेजा ने अपनी कर्मठता,
दूरदर्शिता से पूरे गांव में रामराज्य स्थापित कर दिया। अगर ऐसी ही
दूरदर्शिता और कर्मठता से अन्य लोग लोगों की भलाई में जुट जाएं तो इसमें
कोई शक नहीं कि हमारे पूरे देश में रामराज्य स्थापित हो जाए।
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