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गांव की सरपंच प्रमिला का लड़कियों के लिए बनवाया टॉयलेट।
रायपुर. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज 25 किमी दूर सारागांव को गांव की सरपंच प्रमिला साहू की जिद ने बदलकर रख दिया है। प्रमिला जब सरपंच बनी तो लोगों ने ताना दिया कि अनपढ़ है, क्या विकास करेगी। यह सुनने के बाद प्रमिला ने पढ़ाई शुरू की। फिर गांव की तरक्की के लिए सरकारी मदद नहीं मिली तो खुद के नाम पर 24 लाख का कर्ज लिया और गांव के हर घर से स्कूल तक टॉयलेट बनवा दिए। अब मॉडल गांव बनाने का सपना...
150 बुजुर्गों-महिलाओं को भी पढ़ाई से जोड़ा
- बलौदाबाजार रोड पर रायपुर से लगे सारागांव में छह माह पहले 70 फीसदी घरों में टॉयलेट नहीं थे। स्कूल में छात्राओं के लिए कोई सुविधा नहीं थी। यह तस्वीर सिर्फ छह महीने पहले की है।
- प्रमिला के सरपंच बनने पर लोगों ने उसके पढ़े-लिखे न हाेने पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक अनपढ़ क्या गांव का विकास करेगी।
- इस बात को संजीदगी से लेते हुए प्रमिला ने खुद पढ़ाई शुरू की। साथ ही, धीरे-धीरे गांव के 150 बुजुर्गों-महिलाओं को भी जोड़ा।
- सरकारी मदद नहीं मिलने पर प्रमिला ने खुद के नाम पर 24 लाख का कर्ज लिया और गांव के हर घर से स्कूल तक टॉयलेट बनवा दिए।
- अब सबने मिलकर ठाना है, सारागांव को मॉडल के तौर पर डेवलप करना है।
ऐसे चली तरक्की की लहर
- जब प्रमिला साहू सरपंच बनी थी तो सबसे पहले उसने हर घर में टॉयलेट बनवाने की ठानी। पति ने पूरी मदद की और कुछ महिलाओं के साथ निकल पड़ी लोगों को समझाने के लिए।
- जब प्रमिला साहू सरपंच बनी थी तो सबसे पहले उसने हर घर में टॉयलेट बनवाने की ठानी। पति ने पूरी मदद की और कुछ महिलाओं के साथ निकल पड़ी लोगों को समझाने के लिए।
- कई लोगों ने बार-बार दरवाजे से लौटाया, जहां खाना पकता है, पूजा-पाठ होता है, उस घर में टॉयलेट नहीं बनाएंगे। लेकिन महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी।
- अाखिर मेहनत रंग लाई है। सारागांव में 741 मकान हैं। इनमें से 419 मकानों में सिर्फ छह महीने के भीतर टॉयलेट बने हैं। जिनके घर में जगह नहीं थी, उन्हें सरकारी जमीन पर टॉयलेट बनाकर दिया।
- शुरुआत अच्छी हुई तो गांव के व्यापारी भी सामने आ गए। उधार में सामान देते रहे। इन पैसों से एक बोर खुदवाया और पाइप लाइनें भी बिछवा दीं।
- लोग खुलकर कहते रहे, छह महीने के भीतर ही गांव में जबर्दस्त सफाई हो गई। किसी को बाहर नहीं जाना पड़ता। ज्यादातर के पास पीने का पानी पहुंच गया।
- प्रमिला ने बताया कि उसने जितना काम किया है, उसमें 44 लाख रुपए लगे हैं। 24 लाख का सामान उसने खुद उधार लिया है। उधार लौटाने के लिए लोग रोज ही टोकते हैं। सरकार की तरफ से अब तक एक रुपए नहीं मिला।
- बुजुर्ग और महिलाएं किताब-कॉपी लेकर नजर आएं, हर घर में टॉयलेट दिखे, सरकारी स्कूल में छात्राओं के लिए अलग टॉयलेट बना हो तो समझो कि ये सारागांव है।

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अंगूठा लगाने के बजाय किए जा रहे दस्तखत
- प्रमिला दूसरी कक्षा तक ही पढ़ पाई थी। सरपंच बनी और लोगों ने पढ़ाई का ताना दिया तो खुद पढ़ने लगी, अब आठवीं में है। उन्होंने मजदूर से लेकर हर वर्ग के 150 से ज्यादा लोगों को पढ़ाई से भी जोड़ लिया।
- असर ये है कि मनरेगा में काम करने वाले लोगों में से 90 फीसदी अंगूठा लगाने के बजाय दस्तखत करके मजूरी ले रहे हैं। सभी शाम को पंचायत भवन में इकट्ठा होते हैं और पढ़ाई शुरू।
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सरपंच प्रमिला का फोकस अब गांव की महिलाओं की तरक्की पर है। उन्होंने बताया कि उन्हें रोजगार देने के लिए गांव में जल्दी ही हाेम इंडस्ट्री (कुटीर उद्योग) शुरू करने जा रही हैं।
महिलाओं के किया पैरों पर खड़ा
सरपंच प्रमिला का फोकस अब गांव की महिलाओं की तरक्की पर है। उन्होंने बताया कि उन्हें रोजगार देने के लिए गांव में जल्दी ही हाेम इंडस्ट्री (कुटीर उद्योग) शुरू करने जा रही हैं।
प्रमिला का कहना है कि गांव महिलाओं ने उनका भरपूर साथ दिया, इससे राह आसान हुई। उमेश्वरी पटेल और मीना चौहान के साथ गांव में संचालित सरस्वती महिला स्व सहायता समूह और गायत्री स्वसहायता समूह इसके उदाहरण हैं।
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प्रमिला साहू के मुताबिक, लोगों के ताने ने उनका हौसला बढ़ा दिया। इसी का नतीजा है, गांव की सोच बदली और बदलाव नजर आने लगा। अब हम सबने तय कर लिया है कि इस सारागांव को मॉडल गांव में बदल देंगे।
मॉडल गांव बनाएंगे
प्रमिला साहू के मुताबिक, लोगों के ताने ने उनका हौसला बढ़ा दिया। इसी का नतीजा है, गांव की सोच बदली और बदलाव नजर आने लगा। अब हम सबने तय कर लिया है कि इस सारागांव को मॉडल गांव में बदल देंगे।

गांव में जिन लोगों के पास जगह नहीं थी, उनके लिए सरकारी जमीन पर टॉयलेट बनवाए गए।

गांव में लोगों को घर में टॉयलेट बनवाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।

सारागांव में बदलाव और तरक्की लाने वाली सरपंच प्रमिला साहू।
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