Sunday, February 27, 2011

मुस्‍कराएं, आप बख्‍तावरपुरा , झुंझनू में हैं


ग्रामसभाओं की निष्क्रियता के कारण सरकारी पंचायतों में काफी भ्रष्टाचार है. ग्रामसभा के नाम पर कुछ लोगों के हस्ताक्षर करा लिए जाते हैं और खानापूर्ति हो जाती है. वास्तविक ग्रामसभा बैठती ही नहीं है. लेकिन देश के कुछ ऐसे गांव हैं, जो इस स्थिति को बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं. वे पंचायत के प्रस्तावों की समीक्षा कर रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि ग्रामसभा को मज़बूत बनाया जा सके, ताकि सरकारी प्रस्तावों की ठीक-ठीक समीक्षा हो और अनुचित प्रस्ताव पारित न हो सकें. नतीजतन, इन प्रयासों के परिणाम भी दिखने लगे हैं. अब पंचायतों के जन प्रतिनिधि एवं कर्मचारी
भ्रष्टाचार कर पाने में ख़ुद को असमर्थ पा रहे हैं. ज़ाहिर है, देश के अन्य हिस्सों में भी ग्रामसभा के सशक्तिकरण से पंचायत व्यवस्था आसानी से भ्रष्टाचार मुक्त बनाई जा सकती है.
ग्रामसभा की नियमित बैठक से किसी गांव का विकास कितना संभव है? इस सवाल का जवाब जानना हो तो आप राजस्थान काबख्तावरपुरा गांव देख आइए. इस गांव ने व्यवस्था में बैठे लोगों को बाध्य किया कि वह ग्रामसभा के निर्णय के अनुसार चलना शुरू करें. निष्क्रिय ग्रामसभा को ज़िंदा कर गांव वालों ने तंत्र से जुड़े लोगों को भी इसमें शामिल किया. आज यह गांव पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन गया है.
दिल्ली-झुंझनू मार्ग पर, झुंझनू से क़रीब 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाला एक गांव. यहां की साफ-सफाई और चमचमाती सड़क बरबस ही इधर से गुजरने वालों का ध्यान अपनी ओर खींचती है. रास्ते में एक बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है, मुस्कराइए कि आप राजस्थान के गौरव बख्तावरपुरा गांव से गुज़र रहे हैं. ज़ाहिर है, ऐसा देख-पढ़कर सहज ही किसी का भी ध्यान इस ओर खिंच सकता है. इसलिए भी कि इस तरह के बोर्ड अमूमन बड़े-बड़े शहरों में तो देखने को मिल जाते हैं, लेकिन एक गांव में ऐसा बोर्ड देखकर आश्चर्य लाज़िमी है. गांव के अंदर जाकर देखने और गांव वालों से बात करने पर पता चलता है कि इस गांव में आज पानी की एक बूंद भी सड़क पर या नाली में व्यर्थ नहीं बहती. घरों से निकलने वाले पानी की एक-एक बूंद ज़मीन में रिचार्ज कर दी जाती है. इसके लिए लगभग हर दो-तीन घरों के सामने सड़क के नीचे पानी को ज़मीन में रिचार्ज करने वाली सोख्ता कुइंया बना दी गई हैं. गांव में कई बड़े कुएं भी बने हैं, जहां बारिश के पानी की एक-एक बूंद इकट्ठा की जाती है. सरपंच महेंद्र कटेवा बताते हैं कि गांव की ज़रूरतों के लिए हर रोज़ साढ़े चार लाख लीटर पानी ज़मीन से निकाला जाता है, लेकिन इसमें से क़रीब 95 फीसदी वापस उसी दिन रिचार्ज कर दिया जाता है. पानी की कमी से जूझ रहे राजस्थान के गांवों के लिए यह एक बड़ी बात है. दरअसल, यह गांव जल संरक्षण की दिशा में जिस तरह काम कर रहा है, उससे हमें काफी कुछ सीखने को मिल रहा है. राजस्थान जैसी जगह के लिए तो इस गांव का सफल प्रयोग और भी प्रेरक है.
दिल्ली-झुंझनू मार्ग पर, झुंझनू से करीब 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाला एक गांव. यहां की साफ-सफाई और चमचमाती सड़क बरबस ही इधर से गुज़रने वालों का ध्यान अपनी ओर खींचती है. रास्ते में एक बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है, मुस्कराइए कि आप राजस्थान के गौरव बख्तावरपुरा गांव से गुज़र रहे हैं. ज़ाहिर है, ऐसा देख-पढ़कर सहज ही किसी का भी ध्यान इस ओर खिंच सकता है.
क़रीब 10 साल पहले तक यहां गांव के अंदर ही नहीं, मुख्य सड़क पर भी घरों से निकलने वाला पानी भरा रहता था और हर व़क्त कीचड़ बना रहता था. सरपंच महेंद्र कटेवा और कुछ अन्य लोगों ने मिलकर अपने घरों का पानी ज़मीन में रिचार्ज करना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने घर के सामने सड़क के नीचे 30 फीट गहरी और तीन फीट चौड़ी कुइंया बनाकर उसे ऊपर से बंद कर दिया. इसमें उन्हें तो सफलता मिली, लेकिन गांव के बाकी लोगों ने इसमें ज़रा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई और चार-पांच घरों का पानी रुकने से कीचड़ की स्थिति पर कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं था. तब सरपंच ने ग्रामसभा की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की. इसके फायदे सुनकर गांव के कुछ और लोगों ने भी अपने घरों के सामने ऐसे ही सोख्ता पिट बनवा लिए. इससे सरपंच को लगा कि जो बात गांव वालों को अलग-अलग नहीं समझाई जा सकती, वह एक साथ बैठक में समझाई जा सकती है. इसके बाद तो गांव में हर महीने क़रीब-क़रीब दो ग्रामसभाएं होने लगीं. क़ानूनन राजस्थान में हर महीने की 5 व 20 तारीख़ को ग्राम पंचायत की बैठक होनी ज़रूरी है, जो अगर कहीं होती भी है तो स़िर्फ पंचायत सदस्यों केलिए ही. लेकिन
बख्तावरपुरा में इस बैठक में गांव के लोगों को बुलाया जाने लगा और धीरे-धीरे गांव में हर महीने दो बैठकें होने लगीं, जहां गांव वाले एक निश्चित तारीख़ को अपनी बात रख सकते हैं, पूछ सकते हैं.
इन बैठकों से गांव के विकास का रास्ता निकला. धीरे-धीरे पूरा गांव न स़िर्फ कीचड़मुक्त हो गया, बल्कि लोग साफ-सफाई भी रखने लगे. इसका फायदा यह हुआ है कि गांव में अब मच्छर नहीं हैं. मच्छर न होने से बीमारियां कम हो गई हैं. कटेवा बताते हैं कि इन बैठकों में लिए गए फैसलों को लोग अपने धर्म की तरह मानते हैं. अगर निर्णय सामूहिक न होते तो यह काम होता ही नहीं. अगर होता, कोई कर भी लेता तो फेल हो जाता. अगर वाटर रिचार्ज सिस्टम में कहीं कोई गड़बड़ी आती है तो गांव का हर व्यक्ति उसे सुधारने के प्रति तत्पर रहता है और वह आकर मुझे बताता है कि आज फलां नाली में गड़बड़ी हो गई थी, कचरा आ गया था तो हमने दो आदमियों को भेज दिया और नाली ठीक चल रही है. साफ-सफाई के रूप में मिली सफलता ने गांव वालों को अपने गांव से जोड़ दिया. वे गांव में होने वाले हर छोटे-बड़े काम में अपनी राय रखते हैं और उनकी बात मानी भी जाती है. इसका एक उदाहारण गांव में मुख्य सड़क पर बना बस स्टैंड है. इसमें पंखे लगे हैं, पीने के पानी की व्यवस्था है. इस बस स्टैंड का डिज़ाइन तक गांव के लोगों की बैठक में तय हुआ. सरकार की ओर से इसके रंग-रोगन के लिए चूना-पुताई के पैसे आते हैं, लेकिन गांव वालों ने तय किया कि वे इस पर पेंट कराएंगे. इस पर अधिकारियों ने आपत्ति की, लेकिन गांव वालों ने उनकी एक न चलने दी और आज इस बस स्टैंड की सुंदरता भी यहां से गुजरने वाले लोगों को एहसास कराती है कि वे किसी खास गांव से गुजर रहे हैं.
इसी सड़क पर रात को रोशनी के लिए सोलर लाइट लगाई गई हैं. महेंद्र सिंह कटेवा बताते हैं, इन्हें गांव वालों ने ही स्थान तय करके लगवाया है और आज इनकी बैटरियों-बल्बों की रक्षा के लिए ख़ुद गांव वाले आते-जाते सतर्क रहते हैं. अगर इन्हें बिना ग्रामसभा में बातचीत किए लगाया गया होता तो इनका नामोनिशान भी यहां नहीं होता. और इसका एक मंत्र है, सरपंच का यह मानना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. ग्रामसभा की बैठकों में लोगों की बातें सुनी जाती हैं और उन पर अमल होता है. इसका फायदा यह हुआ है कि गांव के विकास के लिए होने वाले हर काम को लोग अपना काम मानते हैं. ग्रामसभा यदि नियमित रूप से हो और पंचायत की निर्णय प्रक्रिया में गांव के लोगों को शामिल किया जाए तो किसी पंचायत या गांव का संपूर्ण विकास होने से कोई नहीं रोक सकता. यहां तक कि एक भ्रष्ट व्यवस्था या भ्रष्ट अधिकारी भी नहीं. लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि ग्रामसभा में धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता, उम्र, लिंग, ग़रीब-अमीर या किसान-मजदूर जैसा कोई भेदभाव न किया जाए. आदर्श स्थिति यह है कि पंचायतें ग्रामसभा द्वारा दिए गए अधिकारों के सहारे ही काम करें. प्रधान के लिए वे निर्णय बाध्यकारी हों, जो ग्रामसभा द्वारा लिए गए हों, साथ ही ग्रामसभा को एक परिवार के रूप में विकसित किया जाए.
वर्तमान परिस्थितियों में समाज सशक्तिकरण के लिए लोक स्वराज और उसके लिए ग्रामसभा सशक्तिकरण ही एक मार्ग दिखता है. ऐसे में देश की बाकी पंचायतों के लिए बख्तावरपुरा एक मिसाल है. ऐसा नहीं है कि देश की बाक़ी पंचायतों का विकास इस गांव जैसा न हो. रास्ता भी स़िर्फ यही है. राजनीतिक दलों और नेताओं के भरोसे बैठकर आख़िर कब तक इंतज़ार किया जा सकता है.
  • 10 साल पहले गांव हर व़क्त कीचड़ से भरा रहता था
  • आज एक बूंद पानी सड़क-नाली में व्यर्थ नहीं बहता
  • बरसाती पानी इकट्ठा करने के लिए कई कुएं बनाए गए
  • गांव अब कीचड़मुक्त हो गया है, मच्छर भी नहीं हैं
  • बस स्टैंड का मुद्दा-डिज़ाइन तक लोगों ने बैठक में तय किया
आभार  : http://www.chauthiduniya.com/2011/02/muskrayan-aap-bakhtavarpura-me-hain.html

    1 comment:

    1. ITS SO GRATE FOR IN RAJSTHAN AND LEARN BY INDIA FOR WATER HARVESTING PALN FROM THEM

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